Author Topic: Nainital's Historic Nanda-Sunanda Festival : नैनीताल का ऐतिहासिक नंदा-सुनंदा महोत्सव  (Read 22284 times)

नवीन जोशी

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Goddess Nanda-Sunada, Nainital

दोस्तो,


यहाँ में उत्तराखंड के कुमाउन व गढ़वाल अंचलों को एक सूत्र में पिरोने वाली मां नंदा के नैनीताल में 107 वर्षों से द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी अनवरत चलते रहे नंदा-सुनंदा महोत्सव के बारे में एक टोपिक शुरू करने जा रहा हूँ. आप भी इस टोपिक में नई जानकारियाँ दे सकते हैं. इस मेले के बारे में मेले की आधिकारिक वेबसाइट  http://www.nandaramsewaksabhanainital.com/  से भी जानकारी ली जा सकती है. यह मेला लाखों लोगों की धार्मिक आस्था का केंद्र होने के साथ ही शहर में भी लोक संस्कृतियों के संवाहक व संरक्षण का कार्य कर रहा है.



जय मां नंदा-सुनंदा

नवीन जोशी.

नवीन जोशी

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जय देवी जय नन्दे, जयति हिमाद्रि शैल सुते:
उत्तराखण्ड की कुलदेवी हैं राज राजेश्वरी मां नन्दा
एक शताब्दी से पुराना और अपने 107वें वर्ष में प्रवेश कर रहा सरोवरनगरी का नन्दा महोत्सव आज अपने चरम पर है। पिछली शताब्दी और इधर तेजी से आ रहे सांस्कृतिक शून्यता की ओर जाते दौर में भी यह महोत्सव न केवल अपनी पहचान कायम रखने में सफल रहा है, वरन इसने सर्वधर्म संभाव की मिशाल भी पेश की है। पर्यावरण संरक्षण का सन्देश भी यह देता है, और उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊं व गढ़वाल अंचलों को भी एकाकार करता है। यहीं से प्रेरणा लेकर कुमाऊं के विभिन्न अंचलों में फैले मां नन्दा के इस महापर्व ने देश के साथ विदेश में भी अपनी पहचान स्थापित कर ली है।

इस मौके पर मां नन्दा सुनन्दा के बारे में फैले भ्रम और किंवदन्तियों को जान लेना आवश्यक है। विद्वानों के इस बारे में अलग अलग मत हैं, लेकिन इतना तय है कि नन्दादेवी, नन्दगिरि व नन्दाकोट की धरती देवभूमि को एक सूत्र में पिरोने वाली शक्तिस्वरूपा मां नन्दा ही हैं। यहां सवाल उठता है कि नन्दा महोत्सव के दौरान कदली वृक्ष से बनने वाली एक प्रतिमा तो मां नन्दा की है, लेकिन दूसरी प्रतिमा किनकी है। सुनन्दा, सुनयना अथवा गौरा पार्वती की। एक दन्तकथा के अनुसार मां नन्दा को द्वापर युग में नन्द यशोदा की पुत्री महामाया भी बताया जाता है जिसे दुश्ट कंश ने शिला पर पटक दिया था, लेकिन वह अश्टभुजाकार में प्रकट हुई थीं। त्रेता युग में नवदुर्गा रूप में प्रकट हुई माता भी वह ही थी। यही नन्द पुत्री महामाया नवदुर्गा  कलियुग में चन्द वंशीय राजा के घर नन्दा रूप में प्रकट हुईं, और उनके जन्म के कुछ समय बाद ही सुनन्दा प्रकट हुईं। राज्यद्रोही षड्यंत्रकारियों ने उन्हें कुटिल नीति अपनाकर भैंसे से कुचलवा दिया था। उन्होंने कदली वृक्ष की ओट में छिपने का प्रयास किया था लेकिन इस बीच एक बकरे ने केले के पत्ते खाकर उन्हें भैंसे के सामने कर दिया था। बाद में यही कन्याएं पुर्नजन्म लेते हुए नन्दा सुनन्दा के रूप में अवतरित हुईं और राज्यद्रोहियों के विनाश का कारण बनीं। इसीलिए कहा जाता है कि सुनन्दा अब भी चन्दवंशीय राजपरिवार के किसी सदस्य के शरीर में प्रकट होती हैं। इस प्रकार दो प्रतिमाओं में एक नन्दा या नयना और दूसरी सुनन्दा या सुनयना हैं।

अन्य किंवदन्ती के अनुसार एक मूर्ति हिमालय क्षेत्रा की आराध्य देवी पर्वत पुत्री नन्दा एवं दूसरी गौरा पार्वती की हैं। इसीलिए प्रतिमाओं को पर्वताकार बनाने का प्रचलन है। माना जाता है कि नन्दा का जन्म गढ़वाल की सीमा पर अल्मोड़ा जनपद के ऊंचे नन्दगिरि पर्वत पर हुआ था। गढ़वाल के राजा उन्हें अपनी कुलदेवी के रूप में ले आऐ थे, और अपने गढ़ में स्थापित कर लिया था। इधर कुमाऊं में उन दिनों चन्दवंशीय राजाओं का राज्य था। 1563 में चन्द वंश की राजधानी चंपावत से अल्मोड़ा स्थानान्तरित की। इस दौरान 1673 में चन्द राजा कुमाऊं नरेश बाज बहादुर चन्द (1638 से 1678) ने गढ़वाल के जूनागढ़ किले पर विजय प्राप्त की और वह विजयस्वरूप मां नन्दा की मूर्ति को डोले के साथ कुमाऊं ले आए। कहा जाता है कि इस बीच रास्ते में राजा ने गरुड़ बागेश्वर मार्ग के पास स्थित डंगोली गांव में रात्रि विश्राम के लिए रुके। दूसरी सुबह जब विजयी राजा का काफिला अल्मोड़ा के लिए चलने लगा तो मां नन्दा की मूर्ति आश्चर्यजनक रूप से दो भागों में विभक्त मिली। इस पर राजा ने मूर्ति के एक हिस्से को वहीं `कोट भ्रामरी´ नामक स्थान पर स्थापित करवा दिया, जो अब `कोट की माई´ के नाम से जानी जाती हैं। अल्मोड़ा लाई गई दूसरी मूर्ति को अल्मोड़ा के मल्ला महल स्थित देवालय (वर्तमान जिलाधिकारी कार्यालय) के बांऐ प्रकोश्ठ में स्थापित कर दिया गया। इस प्रकार विद्वानों के अनुसार मां नन्दा चन्द वंशीय राजाओं के साथ सम्पूर्ण उत्तराखण्ड की विजय देवी थीं।

कुछ विद्वान उन्हें राज्य की कुलदेवी की बजाय ‘ाक्तिस्वरूपा मां के रूप में भी मानते हैं। उनका कहना है कि चन्दवंशीय राजाओं की पहली राजधानी में मां नन्दा का कोई मन्दिर न होना सिद्ध करता है कि वह उनकी कुलदेवी नहीं थीं वरन विजय देवी व आध्यात्मिक दृष्टि से आराध्य देवी थीं। चन्दवंशीय राजाओं की कुलदेवी मां गौरा पार्वती को माना जाता है। कहते हैं कि जिस प्रकार गढ़वाल नरेशों की राजगद्दी भगवान बदरीनाथ को समर्पित थी, उसी प्रकार कुमाऊं नरेश चन्दों की राजगद्दी भगवान शिव को समर्पित थी, इसलिए चन्दवंशीय नरेशों को `गिरिराज चक्र चूढ़ामणि´ की उपाधि भी दी गई थी। इस प्रकार गौरा उनकी कुलदेवी थीं, और उन्होंने अपने मन्दिरों में बाद में जीतकर लाई गई नन्दा और गौरा को राजमन्दिर में साथ साथ स्थापित किया। वर्तमान नन्दा महोत्सवों के आयोजन के बारे में कहा जाता है कि पहले यह आयोजन चन्द वंशीय राजाओं की अल्मोड़ा शाखा द्वारा होता था, किन्तु 1938 में इस वंश के अन्तिम राजा आनन्द चन्द के कोई पुत्रा न होने के कारण तब से यह आयोजन इस वंश की काशीपुर शाखा द्वारा आयोजित किया जाता है, जिसका प्रतिनिधित्व वर्तमान में नैनीताल सांसद केसी सिंह बाबा करते हैं।

नैनीताल की स्थापना के बाद वर्तमान बोट हाउस क्लब के पास नन्दा देवी की मूल रूप से स्थापना की गई थी, 1880 में यह मन्दिर नगर के विनाशकारी भूस्खलन की चपेट में आकर दब गया, जिसे बाद में वर्तमान नयना देवी मन्दिर के रूप में स्थापित किया गया। यहां मूर्ति को स्थापित करने वाले मोती राम शाह ने ही 1903 में अल्मोड़ा से लाकर नैनीताल में नन्दा महोत्सव की शुरुआत की। शुरुआत में यह आयोजन मन्दिर समिति द्वारा ही आयोजित होता था। 1926 से यह आयोजन नगर की सबसे पुरानी धार्मिक सामाजिक संस्था श्रीराम सेवक सभा को दे दिया गया, जो तभी से लगातार दो दो विश्व युद्धों के दौरान भी बिना रुके सफलता से और नए आयाम स्थापित करते हुए यह आयोजन कर रही है। यहीं से प्रेरणा लेकर अब कुमाऊं के कई अन्य स्थानों पर भी नन्दा महोत्सव के आयोजन होने लगे हैं।

नवीन जोशी

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बदलाओं से भी लगातार समृद्ध होता जा रहा नन्दा महोत्सव
पर्यावरण मित्रा, लोक संस्कृतियों के संरक्षण के साथ वेबसाइट के जरिए देश दुनिया से जुड़ा महोत्सव

नवीन जोशी, नैनीताल। सामान्यतया भूतकाल को समृद्ध परंपरा के लिए याद करने, वर्तमान को बुरा एवं भविश्य के प्रति चिन्तित होने का चलन है। लेकिन इस चलन को सरोवरनगरी का ऐतिहासिक नन्दा महोत्सव साल दर साल नई परंपराओं को आत्मसात करता हुआ लगातार समृद्ध होता और झुठलाता चला आ रहा है। पिछली शताब्दी और इधर तेजी से आ रहे सांस्कृतिक शून्यता की ओर जाते दौर में भी यह महोत्सव न केवल अपनी पहचान कायम रखने में सफल रहा है, वरन इसने सर्वधर्म संभाव की मिशाल भी पेश की है। पर्यावरण संरक्षण का सन्देश भी यह देता है, और उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊं व गढ़वाल अंचलों को भी एकाकार करता है। यहीं से प्रेरणा लेकर कुमाऊं के विभिन्न अंचलों में फैले मां नन्दा के इस महापर्व ने देश के साथ विदेश में भी अपनी पहचान स्थापित कर ली है। शायद इसी लिए यहां का महोत्सव जहां प्रदेश के अन्य नगरों के लिए प्रेरणादायी साबित हुआ है, वहीं आज स्वयं को `ईको फ्रेण्डली´, लोक संस्कृतियों के संरक्षण का वाहक बनता हुआ अन्तर्राश्ट्रीय पहचान बना चुका है।

सरोवरनगरी में नन्दा महोत्सव की शुरुआत नगर के संस्थापकों में शुमार मोती राम शाह ने 1903 में अल्मोड़ा से लाकर की थी। शुरुआत में यह आयोजन मन्दिर समिति द्वारा ही आयोजित होता था, 1926 से यह आयोजन नगर की सबसे पुरानी धार्मिक सामाजिक संस्था श्रीराम सेवक सभा को दे दिया गया, जो तभी से लगातार दो विश्व युद्धों के दौरान भी बिना रुके सफलता से और नए आयाम स्थापित करते हुए यह आयोजन कर रही है। कहा जाता है कि 1955 56 तक मूर्तियों का निर्माण चान्दी से होता था, बाद में स्थानीय कलाकारों ने मूर्तियों को सजीव रूप देकर व लगातार सुधार किया, जिसके परिणाम स्वरूप नैनीताल की नन्दा सुनन्दा की मूर्तियां, महाराश्ट्र के 'गणपति' जैसी ही जीवन्त व सुन्दर बनती हैं। खास बात यह भी कि मूर्तियों के निर्माण में पूरी तरह कदली वृक्ष के तने, पाती, कपड़ा, रुई व प्राकृतिक रंगों का ही प्रयोग किया जाता है। बीते तीन वर्षों से थर्मोकोल का सीमित प्रयोग भी बन्द कर दिया गया है। साथ ही कदली वृक्षों के बदले 21 फलदार वृक्ष रोपने की परंपरा वर्ष 1998 से शुरू की गई। वर्ष 2007 से तल्लीताल दर्शन घर पार्क से मां नन्दा के साथ नैनी सरोवर की आरती की एक नई परंपरा भी जुड़ी है, जो प्रकृति से मेले के जुड़ाव का एक और आयाम है। मेला आयोजक संस्था ने मेले में परंपरागत होने वाली बलि प्रथा को अपनी ओर से सीमित करने की अनुकरणीय पहल भी की है। वर्ष 2005 से मेले में फोल्डर स्वरूप से स्मारिका छपने लगी, जिसका आकार इस वर्ष 165 पृश्ठों तक फैल चुका है। इस वर्ष मेले की अपनी वेबसाइट के जरिऐ देश दुनिया तक सीधी पहुंच भी बन गई है। मेला स्थानीय लोक कला के विविध आयामों, लोक गीतों, नृत्यों, संगीत की समृद्ध परंपरा का संवाहक बनने के साथ संरक्षण व विकास में भी योगदान दे रहा है।

नवीन जोशी

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कुमाऊं गढ़वाल को एक सूत्रा में पिरोती हैं मां नन्दा
नैनीताल में ऐतिहासिक 107वां नन्दा महोत्सव परंपरागत तरीके से शुरू
महोत्सव की वेबसाइट भी हुई लांच, रिकार्ड 165 पृश्ठ की स्मारिका का भी हुआ विमोचन
नैनीताल (एसएनबी)। उत्तराखण्ड की कुलदेवी शक्तिस्वरूपा मां नन्दा का 107वां महोत्सव सरोवरनगरी नैनीताल में आज पूरे दिन भारी वशाZ के बावजूद पूरे धार्मिक उत्साहपूर्वक परंपरागत तरीके से पूजा अर्चना एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ शुरू हो गया। मुख्य अतिथि पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा के राश्ट्रीय उपाध्यक्ष व राज्य सभा सांसद भगत सिंह कोश्यारी ने मां नन्दा को श्रद्धावनत हो षीश नवाते हुऐ उन्हें पूर्वी रामगंगा व रीति रिवाजों के साथ प्रदेश के दोनों अंचलों कुमाऊं व गढ़वाल को एक सूत्रा में पिरोने वाली माता बताया।
इससे पूर्व भारी वर्षा के बीच मल्लीताल रामलीला मैदान की जगह भवन के भीतर आयोजित कार्यक्रम में श्री कोश्चारी ने क्षेत्रीय विधायक खड़क सिंह बोहरा, पूर्व विधायक डा. नारायण सिंह जन्तवाल, आईजी कुमाऊं राम सिंह मीणा, आयोजक संस्था श्रीराम सेवक सभा अध्यक्ष गिरीश जोशी `मक्खन´ व पालिकाध्यक्ष एवं सभा महासचिव मुकेश जोशी के साथ दीप प्रज्वलित कर 107वें नन्दा महोत्सव का शुभारंभ किया। उन्होंने इस दौरान महोत्सव की पहली बार रिकार्ड 165 पृश्ठ की वार्षिक स्मारिका एवं वेबसाइट का शुभारंभ भी किया। उन्होंने इस मौके पर राज्यवासियों से यह संकल्प लेने को कहा कि बलिदान से पहले स्वयं की बुराइयों को त्यागें। संगठित होकर राज्य की समृद्धि में योगदान दें। विधायक बोहरा ने मां नन्दा से महोत्सव को निर्विघ्न सफल करने एवं लोगों पर कृपा बनाऐ रखने की प्रार्थना की। इस दौरान परंपरागत तरीके से मूर्ति निर्माण हेतु प्रयुक्त होने वाले कदली वृक्षों के बदले रोपे जाने वाले 21 पौधों की पूजा अर्चना की गई तथा कदली वृक्ष लाने वाले दल को परंपरागत लाल एवं सफेद ध्वजों (निशानों) को पवित्रा कदली वृक्ष लाने वाले दल को प्रदान किया। इस अवसर पर सरस्वती शिशु मन्दिर व रामा मांटेसरी स्कूल के बच्चों एवं भारत सरकार के गीत एवं नाटक प्रभाग के कलाकारों ने रंगारंग स्वागत गीत व सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किऐ। छोलिया नर्तकों ने भारी बारिश के बावजूद लोक संस्कृति की झलक प्रस्तुत की। इस मौके पर राज्य सरकार के दायित्वधारी डा. अनिल कपूर डब्बू, रवि मोहन अग्रवाल, हेम आर्या, सभा के गंगा प्रसाद साह, जगदीश बवाड़ी, डा. अजय बिश्ट, कमलेश ढोंिढयाल, विमल चौधरी सहित बड़ी संख्या में सदस्य व नगरवासी श्रद्धालु इन गौरवमयी पलों के गवाह बने। संचालन हेमन्त बिश्ट ने किया।


पर्यावरण संरक्षण का सन्देश भी
नैनीताल। 1903 से नगर संस्थापक मोती राम साह एवं उनके परिवार द्वारा एवं 1926 से श्रीराम सेवक सभा द्वारा लगातार आयोजित किये जा रहे नन्दा महोत्सव में 1998 से पर्यावरण सेवी यशपाल रावत के सुझाव पर शामिल किया गया पौधारोपण कार्य इस वर्ष भी जारी रखा गया है। पवित्रा कदली वृक्षों के बदले चोपड़ा (आमपड़ाव) गांव में विभिन्न प्रजातियों के 21 पौधे रोपे जायेंगे, इन पौधों की आज विशेश पूजा अर्चना हुई।


षष्ठी को रवाना होंगे कदली दल
नैनीताल। सामान्यतया कदली वृक्ष लाने के लिए भाद्रपद माह की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को नन्दा महोत्सव के शुभारंभ के अवसर पर ही दल रवाना होते हैं। परन्तु गत वर्ष से यह दल षष्ठी को यानी इस वर्ष सोमवार को सुबह आठ बजे रवाना होंगे और इसी दिन दोपहर बाद दो बजे लौट जाऐंगे। कदली वृक्षों का तल्लीताल वैश्णव देवी मन्दिर में परंपरागत तरीके से स्वागत किया जाएगा, एवं फिर जुलूस की शक्ल में नगर भ्रमण कराया जाएगा। बताया गया है कि आयोजक संस्था के कुछ गिने चुने लोग आज ही चोपड़ा आमपड़ाव रवाना हो जाऐंगे, जबकि शेष लोग कल जाऐंगे। यह बदलाव गत वर्षों में सम्बंधित गांव में पर्याप्त प्रबंध न होने के अतिरिक्त दल में शामिल हो जाने वाले अवांछित तत्वों की गतिविधियों के कारण भी किया गया भी बताया जा रहा है।


कुमाउनीं लोक संस्कृति छायी
नैनीताल। महोत्सव के शुभारंभ मौके पर जहां सभा के लोग `तन से´ यानी परंपरागत कुमाउनीं टोपी व वस्त्रों में थे, वहीं मुख्य अतिथि भगत सिंह कोश्यारी ने अपना भाषण कुमाउनीं में देकर आयोजकों पर भी जैसे तंज कस दिया कि हमें अपनी लोकभाषा से गुरेज नहीं करना चाहिऐ।




पंकज सिंह महर

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 इन ऐतिहासिक तथ्यों से हमें परिचित कराने के लिये नवीन दा का बहुत-बहुत धन्यवाद। साथ ही +१ कर्मा भी

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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Wow,

I think, This is the pic of Nanda & Sunanda from Nanda devi (Almora)...

Daju, Insme Nanda kaun hai aur sunanda kaun hai???

Goddess Nanda-Sunada, Nainital

दोस्तो,


यहाँ में उत्तराखंड के कुमाउन व गढ़वाल अंचलों को एक सूत्र में पिरोने वाली मां नंदा के नैनीताल में 107 वर्षों से द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी अनवरत चलते रहे नंदा-सुनंदा महोत्सव के बारे में एक टोपिक शुरू करने जा रहा हूँ. आप भी इस टोपिक में नई जानकारियाँ दे सकते हैं. इस मेले के बारे में मेले की आधिकारिक वेबसाइट  http://www.nandaramsewaksabhanainital.com/  से भी जानकारी ली जा सकती है. यह मेला लाखों लोगों की धार्मिक आस्था का केंद्र होने के साथ ही शहर में भी लोक संस्कृतियों के संवाहक व संरक्षण का कार्य कर रहा है.



जय मां नंदा-सुनंदा

नवीन जोशी.

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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This is one more Painting of Nanda & Sunanda Which i have.....





 

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