गढ़वळि नाटक”
---------------------xअंधेर नगरी x ---------------
अंधेर नगरी चौपट्ट राजा
टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
(पैलू दृश्य)
(सैर से भैर)
(बाबा जी अफरा द्वि चेलो दगड़ि गौन्दू बजौन्दू औन्दन)
राम राम जपल्या रे
राम राम जपल्या रे
जपला जू तुम राम
त निभ जाला सब काम
राम राम जप...
बाबा जी- ब्यटा नारायण दास! भैर बीटी त यू सैर भौत सुंदर लगणू छ! देख दौ कुछ भिक्चा विक्चा मिलू त भगवान तै भोग लगू बक्की क्या चयेणु।
ना. दा.- जी गुरजी! दिखेंण दर्शनों तै य जगा जू होली सू होली पण भिक्छा बी उन्नी बढ़िया मिलू त मजा ई एजौ।
बाबाजी- ब्यटा नारायण दास तू ईंS धार जा अर
ब्यटा गोवर्धन दास तू वीं धार जा। देखा तब जू कुछ बी मिलू त देबतो तै भोग लगू।
गो. दा.- गुरजी तुम चिंता नी करा, यखा लोग भारी मालदार चितेंणा छन। मैं अब्बी झोल्ला भोरी लौंदो।
बाबाजी- रे रे रे चुचा भंडी लोब नी करी, जादा लोब करी कैकी मवसी नी बंणी आजतलक।
लोब करी कैकी मवसी नी बंणी,
पूरा नी होंदा क्वी काम।
लोब छोड़ी राम राम जपल्या,
बंण जौला तेरा सौब काम।
(गौन्दू गौन्दू सौब चल जांदन)
(दूसरू दृश्य)
(बजार मा)
बोड़ा जी- घर्या दाल लेल्या, घर्या दाल लेल्या। सोंटा, गौथ, तोर अर मसूर लेल्या। कुटरी भोर भोरी लीजा। पाड़ मा लीजा चा पाड़ से भैर लीजा। खै पेतै सेत बंणा। ये मैंगा जमना मा टका सेर लेल्या, टका सेर लेल्या।
बोड़ी- गोदडी, कखड़ी, खिर्रा, चचेंडा लेल्या। घर्या भुज्जी मरसू, पलेंगू अर मुंगरी लेल्या। कै जमनो मा होंदा छा अब समलोंणया ह्वे गेन। माटू खंणला त मिनतौ खैल्या, मिनत नी कैल्या त टका सेर मोलौ लेल्या।
नौनू- हिसर, काफल, बेडू अर लिम्बा नारंगी लेल्या। रस्यांणै चीज छन अब बिसरेंणै ह्वे गेन। खटै बंणै तै खा चा बंणा तुम कचमोली। निम्जा भोरी लीजा टका सेर लेल्या।
मिठै वलू- गरम गरम जलेबी, सिंगोरी, बाल लेल्या। लड्डू , बर्फी अर पेड़ा लेल्या। बन बनी मिठै छन बन बन्या लोख्वू तैं। उलारै मिठै छ छोट्टा बाळो तै, रस्यांणै मिठै छ दानो तै, रंगतै मिठै छ ज्वानू तै, घुसै मिठै छ निकज्जो तै अर राजनीति मिठै बी छ दलबदलू तै। मोन्नै मिठै छ बचणै मिठै छ, टका सेर लेल्या...टका सेर लेल्या।
गाजा बाजा वलू- डौंर ल्या थकुलि ल्या, ढ़ोल ल्या दमो ल्या, रंणसिंग ल्या मसकबाजू ल्या, पिपरी तुतरी सब्बि धांणी ल्या। बाजू लगा मंडाण लगा। देबतों नचा, मनखी नचा। मंडाण बी बन बन्या लगा, राजनित्यो मंडाण लगा, धर्मो मंडाण लगा, जात पातौ मंडाण लगा, आरक्षणा जागर लगा, भ्रस्टाचारौ घड्यलू लगा। जैकू चा वेकू जागर लगा पण या अंक्वेक नचण जनतन ई छ। गाजू बाजू चा क्वी बी ल्या मिललू सिरप टका सेर..टका सेर।
दूध बेचदरु- पिबर दूध ल्या, घ्यू ल्या, नौंण ल्या, दै ल्या, मठ्ठा ल्या। छांछ हमरी छोलेंण तुम सिरप मजा ल्या। मिनत हम यख करला परोठि भोर भोरी तै तुम उंद लीजा। जू बी छ पिबर छ असल छ, जथगा बी ल्या टका सेर ल्या..टका सेर ल्या।
विकास वलू- विकास ल्या, विकास ल्या। अफरु ल्या दूसरोंक ल्या। नयू राजौ विकाश ल्या, हस्पतालों ल्या, स्कूलू ल्या, चारु गुजरू विकाश ल्या। नेतौंक ल्या वूंका चमचोंक विकाश ल्या, विधायकोंक ल्या गौंका पधनूक विकाश ल्या, गल्लेदरुंक ल्या, पल्लेदरुंक ल्या। असल मा ल्या चा कागजूं मा विकाश ल्या टका सेर ल्या...टका सेर ल्या।
शिकार वलू- शिकार ल्या शिकार ल्या। सिरी ल्या, फट्टी ल्या, भुटवा ल्या। तर्रिदार ल्या, सुखू ल्या, चरचरी बरबरी ल्या, कंठ खोलणदार ल्या। कुखडै ल्या, बखरै ल्या, ढ्यबरै ल्या, बोंण सुंगरु ल्या बन बनी रसदार शिकार ल्या। जथगा बी ल्या टका सेर मा ल्या...टका सेर मा ल्या।
खाजा बुखणा वलू- खैजा रे खैजा खाजा बुखणा खैजा। चळमळा कुरमुरा खाजा बुखणा लेल्या। दगड़ा मा छन सबदी रोट अरसा। इबरी मिलणा छन भोळ यूँतै खुदेला। लेल्या रे लेल्या खाजा बुखणा लेल्या, टका सेर लेल्या...टका सेर लेल्या।
राशन वलू- आटू ल्या, चौंळ ल्या, लूंण मर्च ल्या, चिन्नी ल्या, तेल ल्या। टका सेर राशन टका सेर पांणी ल्या।
गो.दा.- उममममम लाला जी यू आटू क्य भौ दे?
राशन वलू- बल टका सेर मा।
गो.दा.- अर चौंळ?
राशन वलू- टका सेर।
गो.दा.- अर चिन्नी?
राशन वलू- यूबी टका सेर।
गो.दा.- अर तेल?
राशन वलू- टका सेर।
गो.दा.- अर लूंण मर्च?
राशन वलू- अरे बामण माराज सब्बी धांणी टका सेर छन।
गो.दा.- हे रे चुचा चखन्यो नी करी वS बामणै दगड़ी। सब्बी टका सेर कनक्वे?
राशन वलू- चखन्यो करी क्य बामणों अपजस लगाण मिन अफ परै।
गो.दा.- (खाजा बुखणा वला मा जैतै पुछदू) भुला यू खाजा बुखणा, रोट अरसा क्य भौ देन?
खाजा बुखणा वलू- माराज सौब टका सेर मा देन, सौब टका सेर छन।
गो. दा.- ब्वा साब क्य बात छ, यख त सब्बी चीज बस्ती टका सेरा भौ से बिकणी छन। ये मैंगा जमना मा य उल्टी गंगा कनक्वे ह्वेली बगणी। (यन बोली तै गोवर्धन दास मिठै वला मू जैतै पुछदू) हाँ त ब्यटा राम मिठै क्य भौ देन?
मिठै वलू- माराज! लड्डू, बर्फी, पेड़ा, जलेबी, सिंगोरी, बाल सब्बी मिठै खटै टका सेर मा देन।
गो.दा.- ब्वा साब! मजा छ यख त। किलै रे मादा झूठ त नी तू बोलणी मैमा। अछी जी होली सब्बी धांणी टका सेर मा?
मिठै वलू- झूठ बोली क्य मिलण माराज हमतै, ईं जगै चाल ई इन्नी छ यख सब चीज बस्ती टका सेर मा बिकदन।
गो.दा.- ईंS जगा नौ क्य छ ब्यटा राम?
मिठै वलू- माराज अंधेर नगरी।
गो.दा.- अर रज्जा कू भग्यान होलू ब्यटा?
मिठै वलू- जी बल चौपट राजा।
गो.दा.- ब्वा साब, अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा। (रंगमत ह्वेतै गोवर्धन दास इखरी इखरी मजा मा यन बोलणू रौंदू)
मिठै वलू- अरे माराज कुछ लेंणी देंणी बी कन तुमन की सुद्दी खीचरोडी कन। लेंदा त ल्या निथर फुंड जा।
गो.दा.- ब्यटा राम मांग मुंगी तै भिक्छा मा सात पैसी मिली छै, उख्खी मा सढ़े तीन सेर मिठै देदी तू। इथगा सब्बी गुरु चेलो तै छकण्यां छ प्वटगी भोरणो तै।
(मिठै वलू मिठै तोलदू, अर गोवर्द्धन दास मिठै लेतै अंधेर नगरी चौपट राजा..गीत गांदू गांदू अर मिठै खांदू खांदू मजा से वख बिटी जांदू)
(तिसरू दृश्य)
(बोंण मा)
(एक तरफ बाबाजी अर नारायण दास राम राम जपल्या भजन गौन्दू गौन्दू औन्दन अर हैंकी तरफा बटी गोवर्धनदास अंधेर नगरी चौपट राजा गौन्दू गौन्दू औन्दू)
बाबाजी- ब्यटा गोवर्धनदास बोल क्य भिक्छा लये। निम्जा त तेरु भारी गर्रु लगणू छ चुचा।
गो.दा.- गुरजी! भंडी माल ताल छ मेरा झोल्ला भीतर। निम्जा भोरी मिठै लयी मेरी आंSSS।
बाबाजी- बतौ दौ ब्यटा राम क्य लयूं तेरु (गुरजी अफरा समणी मिठै कू बुजडू खोलदन)। ब्वा ब्यटा राम! शबास मेरा काळा, पंण या इन बतौ इथगा मिठै लये कखन, कै भग्यानन दे त्वे?
गो.दा.- गुरजी! सात पैसी मिली छै भिक्छा मा वक्खी मा सबा तीन सेर मिठै लयो मैं।
बाबाजी- ब्यटा यू नारायण दास बोलणू त छैं छौ यख सब्बी धांणी टका सेर मा मिलणू छ पण मीन बिसास नी करी। ब्यटा य जगा क्वा छ अर यखौ रज्जा कू छ?
गो.दा.- गुरजी! अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
बाबाजी- ई बप्पा! त ब्यटा जख टका सेर मा भुज्जी अर टका सेर मा खाजा मिलदू हो वीं जग रंयू नी चयेणू।
दोहा : सेत सेत सब एक से, जहाँ कपूर कपास।
ऐसे देस कुदेस में कबहुँ न कीजै बास ॥
कोकिला बायस एक सम, पंडित मूरख एक।
इन्द्रायन दाड़िम विषय, जहाँ न नेकु विवेकु ॥
बसिए ऐसे देस नहिं, कनक वृष्टि जो होय।
रहिए तो दुख पाइये, प्रान दीजिए रोय ॥
यान चला ब्यटों यखन। जैं अंधेर नगरी मा दूंण पाथों भोरी तै फोकट मा बी मिठै मिलू वीं जगा जरा बी रुकूंण ठीक नी।
गो.दा.- इन त क्वी बी देस ई नी ई मुंथा मा जख द्वि पैसा मा छकण्या पेट भोरी खाणो तै मिलू। मीन त नी जांण यख बिटी। हौर जगों त दिनभर मांगी बी पेट नी भोरेन्दू। बाजी बाजी जगों त भुख्खी बी रौंण पोडदू। मीन त यख्खी रौंण।
बाबाजी- देख ब्यटा पिछनै तीन पछतौ कन। बल दाना बोल्यू अर औंला सबाद पछनै औन्दू याद।
गो.दा.- न गुरजी आपै किरपा राली त कुछ नी होंण। मैं त बोल्दो तुम बी यख्खी रावा।
बाबाजी- मैं त नी रौंण्या यख सप्पा बी, भोळ बोली ना मीन बतै नी छौ। मैं त जंदो यख बिटी पण तू कबरी कै दुख बिपदा मा फँसलि त मैं याद करी।
गो.दा.- जी गुरजी परणाम। मैं तुमतै रोज याद करलू। मैं त अब्बी बी बोल्दो तुम यख्खी रुक जावा।
बाबाजी नारायण दासै दगड़ी जांदन अर गोवर्धन दास बैठी तै मिठै खांदू।
(चौथू दृश्य)
(रज्वडू)
(रज्जा, मंत्री अर नौकर अफरी अफरी जगा पै छन)
नौकर- (जोर से घ्याळ मचै तै) हे बल ल्या माराज पान खा।
रज्जा- ( अचणचक डौरी तै गद्दी बिटी चडेम खडू होंदू) क्या जान द्या, हे निर्बगी कख देंण जान, किलै देंण जान, कू लेंणू जान। (इन बोली तै राजा भगदू छ)
मंत्री- (रज्जा हथ पकड़ी तै गद्दी पै बिठौन्दू) अरे माराज वेन जान द्या नी बोली, वेन बोली ल्या माराज पान खा।
रज्जा- लोळू खाडकरु येन मैं डरैयेल छौ। मंत्री यू (नौकर) सौ बार कण्डालीन झपोड़े जाऊ।
मंत्री- पण माराज तुमतै येन थोड़ी डरै, तुम त येका पान तै जान सुणण से डौर्या। न पनवड़ी पान बंणोदू, न यू पान तुमतै देन्दू।
रज्जा- त पनवड़ी तै कंड़लीन झपोड़े जाऊ।
मंत्री- पण माराज पनवड़ी तै त तुमन ई पान लगौंणौ बोली छौ त क्य तुम पै.....
रज्जा- (गुस्सा मा) कपाल डंगड़ै देलू तेरु जादा नी बोली। नौकर! नौकर! नौकर तुराक देबी कख छ।
हैंकू नौकर- (गिलास मा दारू भोरी तै) ल्या माराज आपै तुराक देबी।
रज्जा- (अंगल्यो तै दारू मा ठुबैकी इनै उनै छिड़की पेंदू) ओम अलाय बलाय नमो। हौर दी।
(पिछनै बिटी न्याय कौरा माराज न्याय कौर माराजै आबाज औंदी।)
रज्जा- को छ बे? कै चैंणू न्यो? कैसे चैंणू? अर किलै चैंणू?
(भैर बटी द्वि नौकर एक मनखी तै पकड़ी लौन्दन)
मनखी- माराज मेरी दगड़ी भारी अन्यो ह्वे मेरु न्यो कौरा... मेरु न्यो कौरा... मेरु न्यो कौरा।
रज्जा- हल्ला नी कौर। तेरु न्यो हम यख इन करला जन ज्यूंरा यख बी नी होंदू होलू। बोल क्य बात छ।
मनखी- माराज! कल्लू बणीयै दीवाल भें पोड़ी अर मेरु बखरु पतड़े तै मोर गी। माराज मेरी दगड़ी न्यो कौरा।
रज्जा- (नौकर मा) कल्लू बणीयै दीवाल तै झट्ट पकड़ी लावा।
मंत्री- अरे माराज दीवाल तै पकड़ी नी लै सकदा।
रज्जा- त दिवाला क्वी भै भुल्ला क्वी सोरा भारा होला उंतै पकड़ी तै लावा झट्ट।
मंत्री- (गिच्चा भीतर....झट्ट! तेरी खोपरी फुटली खट्ट) अरे माराज दिवाला क्वी भै बंध क्वी सोरा भारा नी होंदन। दीवाल त ईंट चुनै बंणदी।
रज्जा- त ठीक छ कल्लू बणिया तै लावा पकड़ी तै झट्ट।
(नौकर भैर बिटी कल्लू बणिया तै पकड़ी लौन्दन) किलै बे कल्लू का बच्चा येकी दीवाल पतड़े तै कनक्वे मोरगी?
मंत्री- अरे माराज! दीवाल नी मोरी पतड़े तै, बखरु मोरी पतड़े तै।
रज्जा- हाँ.. हाँ येकू बखरु कनक्वे मोरी पतड़े तै।
कल्लू- माराज! इखमा मेरु क्वी दोस नी। मिस्त्रीन इन कच्ची दीवाल बंणै की बखरु पतड़े तै मोरगी।
रज्जा- ये कल्लू उल्लू तै पकड़ी लावा मिस्त्री तै छोड़ द्या। न...न ये कल्लू तै छोड़ा अर मिस्त्री तै पकड़ी लावा झट्ट। ( नौकर लोग कल्लू तै भैर लिजोंन अर मिस्त्री तै पकड़ी लौन्दन) किलै बे मिस्त्री येकू कुखडू न..न.. येकू लखडू कनक्वे पतड़े।
मंत्री- माराज लखडू नी पतड़े...बखरु पतड़े बखरु।
रज्जा- हाँ.. हाँ वुई येकू चखडू कनक्वे पतड़े?
मिस्त्री- माराज मेरु क्वी कसूर नी। डुट्यालन इन मसलू बंणायी ज्यान दीवाल भें पोड़ी अर बखरु पतड़ेगी।
रज्जा- ये मिस्त्री तै ल्हिजा अर डुट्याल तै लसोड़ी लावा झट्ट। (नौकर लोग मिस्त्री तै लिजौंदन अर डुट्याल तै पकड़ी लौन्दन) किलै बे डुट्याल यां बाखरू मारने मे रामरो लागो है। कनक्वे मोरी बखरू?
डुट्याल- उऊऊऊ साबजी मौईने नोई मोरा बाखरू, वू त कुल्लीन मसला मा बिंजा पांणी ढोळ दे ज्यान दीवाल भें पोड़ी अर बाखरू पतडेगी।
रज्जा- डुट्याल तै निकाला अर कुल्ली तै पकड़ी लावा झट्ट।
(डुट्याल जांदू अर नौकर कुल्ली तै पकड़ी लौन्दन) किलै बे कुल्ली टिरी डैम मा क्य पांणी जादा ह्वेगी जू तीन मसला मा छोड़ दे, अर बाखरू पतड़ेगी।
कुल्ली- न माराज! मैं पै क्य छा भगार लगौणा? वे बूचड़ का बच्चन इथगा बडू चमड़ा थैला बंणै की वेका भीतर बिंजा पांणी भरेगी।
(लोग कुल्ली तै लिजौंदन अर बूचड़ तै पकड़ी लौन्दन)
रज्जा- किलै बे बूचड़ चंद येकू खंतडू किलै फटी फटाक बोल निथर देन्दो मै त्वे फांसी।
मंत्री- अरे माराज खंतडू नी फटी बखरू मोरी बखरु।
रज्जा- हाँ हाँ.. बाखरू कनक्वे पतड़े, दीवाल कनक्वे पोड़ी।
बूचड़- माराज! मीन कुछ नी बिगाड़ी। वे ग्वेर छोरन इथगा बडू ढ्यबरू बेची ज्यान चमड़ा थैला इथगा बडू बंणगी।
(बूचड़ भैर लिजौंदन ग्वेर तै पकड़ी लौन्दन)
रज्जा- हाँ रे ग्वेर छोरा ढ्यबरा बिकी गेनी तेरा बखरा पतड़ी गेन। किलै बेची तीन बडू ढ्यबरू?
ग्वेर- न माराज मेरु क्वी दोस नी। समणी बिटी कोतवालै सवरी छै औंणी अर वे देखणा चक्कर मा मीन जक्क बक्क मा बडू ढ्यबरू बेच दे।
रज्जा- निरबै कोतवाल तै झट्ट पकड़ी लावा।
(ग्वेर तै लिजौंदन अर कोतवाल तै पकड़ी लौन्दन) हाँ भै कोतवाल तीन इथगा धूम धाम से सवरी किलै निकाली ज्यान बखरू भें पोड़ी अर कल्लू बणिया पतड़े तै मोरगी। (इन सुंणी तै सब्बी अफरा मुंडा बाल झिमडौंदन)
कोतवाल- पण माराज मीन त कुछ नी करी मैं त सैरा बिबस्ता वस्ता छौ जांणू।
मंत्री- (अफी अफ मा) कन बक्की बात ह्वे, कखी यू कूसगोरया रज्जा सैरा सैर तै फूंक न द्यो य फेर सब्यों तै फांसी न दे द्यो। (कोतवाल मा) चुप रे, सौब तेरु ई कसूर च तीन किलै निकाली सवरी इथगा धूम धाम से।
रज्जा- हाँ हाँ सौब येकू दोस छ, न यू सवरी निकलदू न बखरु मोरदू।
कोतवाल- पण माराज...माराज
रज्जा- मैं कुछ नी सुंणण चांदो, ल्या रे कोतवाल तै पकड़ी लिजा अर फांसी पै लटकै द्या झट्ट। सभा बरखास्त।
( एक तरफा बिटी लोग कोतवाल तै पकड़ी लिजौंदन अर हैंकी तरफा बिटी मंत्री रज्जा तै पकड़ी लिजौन्दू)
(पंचौ दृश्य)
(बोंण मा)
(गोवर्धनदास गौन्दू गौन्दू औन्दू)
अंधेर नगरी चौपट राजा,
टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
ईंs नगर्यो छ रिबाज अलग
उब्ब पताल अर उंद सरग।
घरमौ बोलदरु नी छ क्वी यख
अधरमै नीति खपदी यख।
चोर मणोंदा छन तीज तेवार
आंख्या बुज्या मा चलणी सरकार।
सच बोलदरा मरेंदा छन यख
झूठा गौला उंद फूलूँ माला बरख।
अराजकता मची चौ दिसू ये देश
जन बोल्यो यखौ रज्जा गंयू हो परदेश।
उब्ब छन जू वू जांणा छन उब्बा उब्ब
जू छन उंद वू छन जांणा हौर खाड़उंद।
ई अंधेर नगरी मा छन मजा भौत,
ढुंगौ छ मोल अर सुनै छ खौत।
छौंदा आंखा कांणू छ चौपट राजा,
टके सेर भाजी अर टके सेर खाजा।
अंधेर नगरी चौपट राजा
टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
गो.दा.- गुरजी सुद्दी बोल्दा छा यखन जांणो तै, यख त मजा ई मजा छ। दिनभर गेरेटि भोरी खा प्या अर रात निचन्त ह्वेतै स्या। माणी मीन यू देस भौत बुरु छ पण हमुन कौनसे राज काज कन जू बिगर बातौ मूंडरू पलण। अफरु क्या फोगट मा खटै मिठै खांणा रावा बिरणी मवसी मा अर भजन कीरतन करणा रावा। (मिठै खांण लग जंदो)
(तबरयो चार पांच सिपै औन्दन अर वेतै चौ तरफन पकड़ लेंदन)
पैलू सिपै- चला माराज तुमरु टैम ऐगी। घुल घाली तै भौत म्वाटा ह्वे ग्यां तुम।
दूसरू सिपै- चला माराज अब वक्खी कैन जै बद्रीविशाल।
गो.दा.- ई यपडी ब्वेका! य आफत कखन आयी। कू छां रे तुम , मैं किलै लिजौंणा। मीन क्य बिगाड़ी कैकू?
पैलू सिपै- कैकू कुछ बिगाड़ी छ य नी बिगाड़ी येसे क्वी मतलब नी। तुम त बस पाँसी चढ़णो तै तैयार ह्वे जा।
गो.दा.- (घबरै तै) हे मेरी ब्वे फाँसी? मीन कैकू उजाड़ खै? मीन त क्वी नी लुछी जू तुम मैं फांसी देंणा। मीन त क्वी खून खत्तर नी करी।
दूसरू सिपै- तुमरु दोस यू छ की तुम म्वाटा छा। तुम म्वाटा छां यान तुमतै फांसी दियेंणी।
गो.दा.- मोटू होंण बी क्वी दोस छ? य त क्वी बात नी ह्वे। अरे मास्तो साधू संतो दगड़ी ठठ्ठा मजाक नी करदन।
पैलू सिपै- यू त फांसी पै चढ़णा बाद ई पता चललू ठठ्ठा छ य सच। सिधू रासी चलदा की लसोड़ी लीजा तुमतै।
गो.दा.- मेरी दगड़ी इथगा अन्यो किलै करणा तुम, मैं त निरदोस छौ। हे लोळो भगवान देखी त डौरा।
पैलू सिपै- भगवान देखी हमुन किलै डरण, डरलू त राजा डरलू। हम त वेका बोल्यां पै चलदा।
गो.दा.- फेर बी ब्यटों बात क्य छ? कुछ त बिंगा, समझम नी औंणू कुछ।
पैलू सिपै- अरे बामण माराज बात य छ..ब्याली कोतवाल तै फाँसी ह्वे छै। जब हम वे तै फांसी पै चढोंणो गंया त जू फांस्यो जुड़ू छौ वू बडू ह्वे गी। अब साब कोतवाल जी त छन बरीक किंगण्या सी ज्यान फांस्यो फंदा वूंका गौला मा ढिल्लू ह्वे गी। हमुन य बात माराज मा बतै त वूंन बोली कै म्वाटा मनखी तै फाँसी दे द्या। अब बखरु मरणा जुरम मा क्वी न क्वी त फाँसी लगौंणी छौ निथर भारी अन्यो ह्वे जांदू। यान हम कोतवाला सांटा मा अब तुमतै फांसी पै चढोंणो लिजौंणा छा।
गो.दा.- हे लोळा उल्टी बुध्यों कन तुमरा ये पूरा देस मा हौर क्वी मोटू मनखी नी छ। तुमतै मैं ई मिल्यो।
पैलू सिपै- यख मा द्वि बथ छन। पैली त यs ये देस मा रज्जा न्याया डौरन क्वी म्वाटू नी होन्दू। अर दूसरी बथ य छ जू हम कैतै लिजौंणो बोल्दा त वू बन बन्या बाना बंणोन्दू जांणो तै। अर उन बी ये राज मा गौड़ी अर साधू संतोक ई त बड़ी दुर्दसा छ। यान हमुन त अब तुमतै ई फाँसी देंण।
गो.दा.- हे परमेसुरा मै बचौ, हे नागर्जा नर्सिंग कख छा तुम। हे लोळो सुद्दी मुद्दी मरेंदो मैं। सची मा बडू अंधेर छ ईं अंधेर नगरी मा। मीन जू उबरी गुरजी बात माणी होंदी त इबरी बच जांण छौ मीन। हे गुरजी मैं बचा, कख छां तुम? हे गुरजी...हे गुरजी। कन गौला गौला ऐ मेरी। हे गुरजी कख छां तुम, गुरजी...गुरजी।
(गोवर्धन दास ह्वाडी ह्वाडी घ्याल मचोन्दू अर सिपै वे पकड़ी लिजौंदन)
(छठ्ठों दृश्य)
(मढ़घट मा)
(चार सिपै गोवर्धन दास तै लसोड़ी तै औन्दन)
गो.दा.- हे नीरण्यो करो मैं सुद्दी मा फाँसी नी लगा। हे कन बक्की बात होणू यख। कन अधरम कन्ना तुम। अरे क्वी त बचा। नी कौरा रे इतरू अन्यो नी कौरा। भगवान देखी डौरा रे भगवान देखी। मैं तै फाँसी देतै तुमतै क्य मिलण। मैं जांण द्या... मैं छोड़ द्या।
( रौंणू रौंदू अर छोड़ोणै कोसिस करदू)
सिपै- चुप रौ हल्ला नी कौर, जब मोरणी छै त सांती से मोर। यू राजा हुकुम छ हम रज्जा अंणबोल्यू नी कै सकदा। आखिरी बगत मा कुलदेबता तै याद कौर।
गो.दा.- हे राम! मीन गुरज्यो बोल्यू किलै नी मांणी होलू उबरी। उबरी वूंतै अंणसुंण्यू नी करी होन्दू मीन त आज यू दिन नी देखदू। अरे क्वी छैं छ ई नगरी मा धर्मात्मा मनखी जू मैं बचै सकू। पण जब जैं जगा नौ अंधेर हो अर रज्जा चौपट हो त कै से उमीद कै सकदा हम। गुरजी कख छां तुम, बचा मैं,गुरजी...गुरजी..गुरजी।
(वू रौंदू छ, सिपै वेतै लसोड लसोड़ी लिजौंदन)
(गुरजी नारायण दासै दगड़ी औन्दन)
बाबाजी- अरे ब्यटा गोवर्धन दास तेरी य गत कनक्वे ह्वे। क्य बात छ।
गो.दा.- ( हथ जोड़ी तै) गुरजी दीवाल भें पोड़ी अर बखरू पतड़े तै मोर गी। अब यू लोग मैं तै फांसी देंणा छन।
बाबाजी- ब्यटा मीन त पैली बोलेल छौ यू देस रौंण लैक नी पण तीन उबरी मेरु बोल्यू नी मानी।
गो.दा.- जी गुरजी तुमरु बोल्यू नी मानी यानी मेरी य कुदसा ह्वे। गुरजी तुमरा अलावा हौर क्वी मेरु अफरु नी ई मुंथा मा। गुरजी मेरी रक्छा करा।( गुरज्या खुट्टा मा पोडदू)
बाबाजी- क्वी बात नी ब्यटा चिंता नी कौर सौब ठीक ह्वे जलू। भगवान छ देखण वलू।
(बाबाजी भौं उब्ब करी सिपै मा बोल्दन)
सुंणा रे, मैं अफरा चेला तै आखिरी बार उपदेस देंण चांदो। तुम जरा सी फुंड चल जा, मेरु बोल्यू नी मानी तुमुन त पछतौंण पोडलो।
सिपै- न माराज हम पिछनै चल जंदा। तुम उपदेस द्या।
( बाबजी चेला कंदुड मा कुछ खुसुर पुसुर करदन)
गो.दा. - ब्वा गुरजी फेर त मीन ई फांसी पै चढ़ण।
बाबाजी- न ब्यटा मैं फांसी पै चढ़ळू।
गो.दा.- न न गुरुजी मीन चढ़ण फांसी पै।
बाबाजी- फेर इथगा समझै बिंगै तै बी नी बिंगै, मैं बुढ्या ह्वे ग्यो यान मैं तै फांसी पै चढ़ण दी।
गो.दा.- द ज्जा! सर्ग जांण मा क्य बुढ्या क्य ज्वान। तुम त सिद्ध मात्मा छा, तुमतै गति अर अगति से क्य लेंणी देंणी। यान मै तै फांसी पै चढ़ण द्या।
(इन्नी द्वि का द्वि फांस लगणो तै छिजरोल करदन अर सिपै धंगतोळ मा पोड जांदन)
पैलू सिपै- ई यपडी ब्वेका यू क्या होंणू बिंगण मा नी औंणू।
हैंकू सिपै- हाँ यार भैजी क्य बात होली मेरी बी बिंगण मा नी औंणू।
(रज्जा, मंत्री अर कोतवाल औन्दन)
रज्जा- क्य बात छ? यू क्य चलणू यख?
पैलू सिपै- माराज गुरु बोलणू मैं फांस लगलू चेला बोलणू मैं फांस लगलू। कुछ पता नी चलणू क्य बात छ।
रज्जा- (बाबजी मा) बाबजी! बोला तुम किलै फांसी चढ़ण चांणा?
बाबजी- अरे ब्यटा बात य छ इबरी भौत सुंदर गिरै चाल चलणी छ। इबरी जू बी मोरलू वेन सिधू सर्ग जांण।
रज्जा- हैं! फेर त मीन फांसी चढ़ण।
गो.दा.- न न मैतै पकड़ी लै छा त मीन चढ़ण फांसी।
कोतवाल- अज्जी हाँ... मेरा कारण दीवाल भें पोड़ी अर बखरु मोरी, त मीन फांसी लगण।
मंत्री- न..न मीन फांसी लगण।
सिपै- अब त हमुन ई फांसी लगण।
(फांसी लगणो तै सब्यों मा तू तू मैं मैं होंदी)
रज्जा- चुप ह्वे जा सब। कुकर्यो नी मचा। छौंदा राजा हौर कू बैकुंठ जै सकदू। मैं तै फांसी चढा अब्बी फटाक..झट्ट।
बाबजी-
जै देस घरम, बुध्धी, नीति से लेंदी नी जनता क्वी काम,
अफी होंदू बिंणास वे देसौ, जन करणू चौपट राम।
( रज्जा तै लोग फाँसी पै चढ़ै देंदन)
नाटक खतम होंदू....
"गढ़वळि अनुवाद- अखिलेश अलखनियाँ"
“मूल नाटक- अंधेर नगरी (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र)”