मेरा डंडी कंठीयूं का मुलुक जैल्यु
मेरा डंडी कंठीयूं का मुलुक जैल्यु
मेरा डंडी कंठीयूं का मुलुक जैल्यु ,
बसंत ऋतू मा जैई , बसंत ऋतू मा जैई
मेरा डंडी कंठीयूं का मुलुक जैल्यु ,
बसंत ऋतू मा जैई , बसंत ऋतू मा जैई
हैरा बण मा बुरांस का फूल , जब बनाग लगाना होला
बीता पखों तें फ्योलिं का फूल , पिंगला रंग माँ रंग्यणा होला
लैयाँ पैयाँ ग्वीराळ फूलु न, लैयाँ पैयाँ ग्वीराळ फूलु न ,
होली धरती सजी देखि ऐई …
बसंत ऋतू मा जैई…
मेरा डंडी कंठीयूं....
रंगीला फागुन होल्येरूं की टोली , डंडी काण्ठियों रंग्यणी होली ,
कैका रंग मा रंग्युं होलु क्वीई , क्वी मणि -मन मा रंग्श्याणी होली
किरमिची केसरी रंग की बार किरमिची केसरी रंग की बार ,
प्रेम का रंगों मा भीजि ऐई
बसंत ऋतू मा जैई…
मेरा डंडी कंठीयूं....
बिन्सिरी देलिओं मा खिल्दा फूल , राति गाऊं -गाऊं गीतेरुं का गीत ,
चैता का बोल , औजियों का ढोल, मेरा रौंतेला मुलुकेय की रीत ,
मस्त बिगरैला बैखुं का ठुमका ,मस्त बिगरैला बैखुं का ठुमका
बांदूं का लसका देखि ऐई
बसंत ऋतू मा जैई…
मेरा डंडी कंठीयूं....
सैना दमला अर चैते बयार, घस्यारी गीतों न गुन्ज्दी दांडी
खेल्युं मा रंग -मत ग्वेर छोरा , अत्कडा गोर घामडांडी घंडी ,
उखी फुंडेय होलु खत्युं मेरु भी बचपन उखी फुंडेय होलु खत्युं मेरु भी बचपन
उकरी सक्ली ते उकरी की लैई
बसंत ऋतू मा जैई…
मेरा डंडी कंठीयूं का मुलुक जैल्यु ,बसंत ऋतू मा जैई
बसंत ऋतू मा जैई
बसंत ऋतू मा जैई
गढ़वाली गीत नरेंद्र सिंग नेगी का
बस अनुवाद किया है गढ़वाली भाषा को बढ़वा देने के लिये
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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