Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 72302 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
December 7 at 2:27am · Edited ·

ये काया

बस अपरू मा समै
ये काया बल तिल क़्या कमै
तिल क़्या कमै
बल सब कुच गमै

जब नि रै तू अपरी ही
क्या कैर तिल ऊपरि ऊपरि ये काया
क्या कैर तिल ऊपरि ऊपरि
रंग रुपण हर्ची रुपया गै सब खरची ये काया
तिल क्या कमै
बल सब कुच गमै

धुंधि मा छे तू
अपरी ही गरमी मा छे
कैल इन क्या पिलै तैथे
तू इन कण टुंडी मा छे ये काया
तिल क्या कमै
बल सब कुच गमै

बालपन इनि सुधि गैई
ज्वानि बर्बाद व्है क्ख्क हर्ची गैई
बूढपु ऐई फिर बी ते काया पर
अबी तक अकल दाड़ नि ऐई ये काया
तिल क्या कमै
बल सब कुच गमै

बस अपरू मा समै
ये काया बल तिल क़्या कमै
तिल क्या कमै
बल सब कुच गमै

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
December 6 at 7:11am · Edited ·

जमी जा डाली

जमी जा डाली माया की
कैन कैन खैई यख भागा की ……२
जमी जा डाली माया की

नि लगे नि लगे
माया तू मेरी इन नि लगे
नि बढे नि बढे
प्रीत लगुली तू इन नि बढे

छोड़ छड़ीकी सबी चौलि जांद
रौली पानी सी सब बौगी जांदा
खते जांद ज्वानि ना ना इन नि कैर
ये झूठु बस्ता माया का ना खांदा धैर

इन लगे इन लगे
माया मेरी तू इन लगे
मेरु पाडा मेरु घार को
बस उत्तरखंड मेरु सौंसार सारा को

इन लगे माया मेरी ये माटा जमै
फ्योंली बुरांस ये पाड़ा जन खिले
जन आंद रोज सुबेर ब्योखन रात
चौमासा जणू मेरु स्वास यख मिले

नि लगे नि लगे जमै माया की
कुकुरू सुंघर नि खैई यख भागा की ……२
नि लगे नि लगे जमै मया की

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
December 3 ·
·

मि नि जंण दू

मि नि जंण दू
आच क्य व्हालु
क्या व्हालु भौळ
बात नि कैर
इन नि छुच
ना तू दैर
मेरा मन का भास्
गैला कण कैकि
ऐ जांदा ऐ
जीकोडी का पास
सर सर कैना लगीँनी
चढ़ी गैंन ईं
स्वास पर ई स्वास
नि जंण दू कया हूंद मी थे
कबी तैर व्हैकि बी
ना खुटी हिटदी
वै कुलै का गैल
अंधार मा दिके
जांद जबै मी झौल
भिसे जांदू
किले झुरै जांदू
उठै की झट अचणचक
कण मी बैठ जांदू
मि नि जंण दू
आच क्य व्हालु
क्या व्हालु भौळ
बात नि कैर
इन नि छुच
ना तू दैर

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
December 13 · Edited
अपरा पाड़ों मा ह्युंद पोड़ी गे होलू

अपरा पाड़ों मा ह्युंद पोड़ी गे होलू
कै कोयेडु कै कुल्हण वो घाम लुकियूं होलू

डंडा धारा घार दार सब गरठियुं होलू
जदु दगडी सबी कु कामकाज थमी होलू

टैम टेबल हर्ची हर्ची सुबेर ब्योखोन होलू
आग तपदा तपदा छूईं मा बेल हर्ची गै होलू

नींदि नि सबी थे अपरू अंग्वाल लेलीं होलू
मेरु पाड़ा सन्कुली निरजक सै गै होलू

अपरा पाड़ों मा ह्युंद पोड़ी गे होलू
कै कोयेडु कै कुल्हण वो घाम लुकियूं होलू

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
December 9 · Edited
जब से देखी तेरी मुखडी

जब से देखी तेरी मुखडी
मा वा जून की जुन्याली
अंधारू उजाळु व्है जांदी
जब वा आपरी नजरि मिलांदी
जब से देखी तेरी मुखडी

माया इनि लगोंदी छुची
आँखों दगडी वा इनि ब्चांदी
दन्त पंक्ति हैंसी देख्दा देख्दा
विं ग्लोडी ये दिल लुची जांदी
जब से देखी तेरी मुखडी

बांदों मा की बांद छे या
सरगा बाटू ऐ क्वी तू अछेरी
मी बना दे अपरू जीतू बग्वाल
मेर बांसुरी व्हैगे अब से तेरी
जब से देखी तेरी मुखडी

क्या क्या जतन करू मी
कण कणके ते थे मी मनेऊ
कब तेरी मया व्हाली मेरी
दिन राती तेरा सुप्निया सजेऊँ
जब से देखी तेरी मुखडी

जब से देखी तेरी मुखडी
मा वा जून की जुन्याली
अंधारू उजाळु व्है जांदी
जब वा आपरी नजरि मिलांदी
जब से देखी तेरी मुखडी

एक उत्तराखंडी

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December 7 · Edited
ये काया

बस अपरू मा समै
ये काया बल तिल क़्या कमै
तिल क़्या कमै
बल सब कुच गमै

जब नि रै तू अपरी ही
क्या कैर तिल ऊपरि ऊपरि ये काया
क्या कैर तिल ऊपरि ऊपरि
रंग रुपण हर्ची रुपया गै सब खरची ये काया
तिल क्या कमै
बल सब कुच गमै

धुंधि मा छे तू
अपरी ही गरमी मा छे
कैल इन क्या पिलै तैथे
तू इन कण टुंडी मा छे ये काया
तिल क्या कमै
बल सब कुच गमै

बालपन इनि सुधि गैई
ज्वानि बर्बाद व्है क्ख्क हर्ची गैई
बूढपु ऐई फिर बी ते काया पर
अबी तक अकल दाड़ नि ऐई ये काया
तिल क्या कमै
बल सब कुच गमै

बस अपरू मा समै
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तिल क्या कमै
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December 6 · Edited
जमी जा डाली

जमी जा डाली माया की
कैन कैन खैई यख भागा की ……२
जमी जा डाली माया की

नि लगे नि लगे
माया तू मेरी इन नि लगे
नि बढे नि बढे
प्रीत लगुली तू इन नि बढे

छोड़ छड़ीकी सबी चौलि जांद
रौली पानी सी सब बौगी जांदा
खते जांद ज्वानि ना ना इन नि कैर
ये झूठु बस्ता माया का ना खांदा धैर

इन लगे इन लगे
माया मेरी तू इन लगे
मेरु पाडा मेरु घार को
बस उत्तरखंड मेरु सौंसार सारा को

इन लगे माया मेरी ये माटा जमै
फ्योंली बुरांस ये पाड़ा जन खिले
जन आंद रोज सुबेर ब्योखन रात
चौमासा जणू मेरु स्वास यख मिले

नि लगे नि लगे जमै माया की
कुकुरू सुंघर नि खैई यख भागा की ……२
नि लगे नि लगे जमै मया की

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December 3
मि नि जंण दू

मि नि जंण दू
आच क्य व्हालु
क्या व्हालु भौळ
बात नि कैर
इन नि छुच
ना तू दैर
मेरा मन का भास्
गैला कण कैकि
ऐ जांदा ऐ
जीकोडी का पास
सर सर कैना लगीँनी
चढ़ी गैंन ईं
स्वास पर ई स्वास
नि जंण दू कया हूंद मी थे
कबी तैर व्हैकि बी
ना खुटी हिटदी
वै कुलै का गैल
अंधार मा दिके
जांद जबै मी झौल
भिसे जांदू
किले झुरै जांदू
उठै की झट अचणचक
कण मी बैठ जांदू
मि नि जंण दू
आच क्य व्हालु
क्या व्हालु भौळ
बात नि कैर
इन नि छुच
ना तू दैर

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October 7
ऐ जा ऐ आंसू ऐ

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये
तू किले रुनु छे यकुली
परेली दगडी भिजी जा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये

उमली उमल सरै जालु
अपर ये दिन बी कटे जालु
ना हेर ये बाटा ये
क्वी नि आनु ये पाड़ा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये

भेंटि जा ये ग्लोडी ये
लुनु खारु नि छोड़ि जा ये
बडुळि मा छे ये रेघा ये
सांकि कि तिस बुझै जा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये

तेरी विपदा ये तिल जाणा ये
तेरी खैरी ई तिल ही खाणा ये
ना कैर ये भीतर भैर ये
आंसूं मेर बोल्यूं माणी जा ये

ऐ जा ऐ आंसू ऐ
आँखि भते बोगी जा ये
तू किले रुनु छे यकुली
परेली दगडी भिजी जा ये

एक उत्तराखंडी

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मेरा डंडी कंठीयूं का मुलुक जैल्यु
मेरा डंडी कंठीयूं का मुलुक जैल्यु

मेरा डंडी कंठीयूं का मुलुक जैल्यु ,
बसंत ऋतू मा जैई , बसंत ऋतू मा जैई
मेरा डंडी कंठीयूं का मुलुक जैल्यु ,
बसंत ऋतू मा जैई , बसंत ऋतू मा जैई

हैरा बण मा बुरांस का फूल , जब बनाग लगाना होला
बीता पखों तें फ्योलिं का फूल , पिंगला रंग माँ रंग्यणा होला
लैयाँ पैयाँ ग्वीराळ फूलु न, लैयाँ पैयाँ ग्वीराळ फूलु न ,
होली धरती सजी देखि ऐई …
बसंत ऋतू मा जैई…
मेरा डंडी कंठीयूं....

रंगीला फागुन होल्येरूं की टोली , डंडी काण्ठियों रंग्यणी होली ,
कैका रंग मा रंग्युं होलु क्वीई , क्वी मणि -मन मा रंग्श्याणी होली
किरमिची केसरी रंग की बार किरमिची केसरी रंग की बार ,
प्रेम का रंगों मा भीजि ऐई
बसंत ऋतू मा जैई…
मेरा डंडी कंठीयूं....

बिन्सिरी देलिओं मा खिल्दा फूल , राति गाऊं -गाऊं गीतेरुं का गीत ,
चैता का बोल , औजियों का ढोल, मेरा रौंतेला मुलुकेय की रीत ,
मस्त बिगरैला बैखुं का ठुमका ,मस्त बिगरैला बैखुं का ठुमका
बांदूं का लसका देखि ऐई
बसंत ऋतू मा जैई…
मेरा डंडी कंठीयूं....

सैना दमला अर चैते बयार, घस्यारी गीतों न गुन्ज्दी दांडी
खेल्युं मा रंग -मत ग्वेर छोरा , अत्कडा गोर घामडांडी घंडी ,
उखी फुंडेय होलु खत्युं मेरु भी बचपन उखी फुंडेय होलु खत्युं मेरु भी बचपन
उकरी सक्ली ते उकरी की लैई
बसंत ऋतू मा जैई…
मेरा डंडी कंठीयूं का मुलुक जैल्यु ,बसंत ऋतू मा जैई
बसंत ऋतू मा जैई
बसंत ऋतू मा जैई


गढ़वाली गीत नरेंद्र सिंग नेगी का
बस अनुवाद किया है गढ़वाली भाषा को बढ़वा देने के लिये

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