Author Topic: Sidhibali Mandir Kotdwar Uttarakhand- सिधिबली (हनुमान जी) मंदिर कोटद्वार  (Read 29166 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

Shri Sidhibali Temple dedicated to Humanu Ji is situated in Kotdwar, Pauri Garhwal District of Uttarakhand. This mythological temple of Shri Hanuman Ji is 3 km away from Kotdwar City near the Bank of Khoh River.




 खोह नदी के तट पर बना यह मंदिर अत्यंत रमणीय है! खोह नदी पुराणों में कौमुदी नदी के नाम से प्रसिद्ध है ! जो स्थानीय जानकारों के अनुसार डांडामंडी क्षेत्र एवं हेम्वंती (ह्रालू) नदी के दक्षिण से निकलती है!
 
 केदारखंड में वर्णित
 
 गंगाद्वारोत्तरेभागे गंगाया प्रागिव्भागके !
 नदी कौमुद्ती ख्याता सर्वादारीद्रनाशिनी !!
 
 केदार खंड अध्याय - ११५ शलोक २५
 
 मान्यता है इस मंदिर में सिधि बाबा को हनुमत की सिधि प्राप्त हुयी थी ! इस टोपिक में सिधिबली मंदिर के बारे में जानकारी दंगे !
 
 एम् एस मेहता 


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  श्री सिद्धबली धाम महिमा गुणत्रयविभेदेन मूर्तित्रयमुपेयुषे, त्रयीभुवे त्रिनेत्रायं त्रिलोकीपतऐ नम:, अर्थ:- रजोगुण की प्रधानता के कारण ब्रह्मस्वरुप, सत्वगुण की प्रधानता के कारण बिष्णुरूप तथा तमोगुण की प्रधानता के कारण शिवस्वरुप, इस भांति से तीन मूर्तियों के धारण करने वाले तीनो लोको के उदपादक या तीनो वेदों के प्रकाशक तथा तीनो लोको के स्वामी शिवजी को मेरा प्रणाम है. इस पृथ्वी पर देवों के देव महादेव अर्थात शिवजी कण-कण में विराजमान है परन्तु उनका निवास स्थान हिमालय को माना गया है एवं इनकी पहाड़िया को शिव नाम अर्थात शिवालिक श्रेणी के नाम से ही जाना जाता है क्योंकी ये श्रेणीयां अपने आप में शिवजी है अर्थात शिखर वन एवं जीव जिनकी सामजस्यता ही शिवजी नाम को परिपूर्ण करती है अर्थात जहाँ शिखर हो और उनमे वन हो तथा उनमे जीव हो तो शिवजी पर्वत श्रेणी के रूप में साक्षात विराजमान होते है. पृथ्वी पर ऐसा स्थान हिमालय का केदारखंड, उत्तराखंड ही है जो देव स्थान ऋषि मुनियों कि तपस्थली के कारण सदेव ही पूजनीय है. स्कंध पुराण में उल्लेख है कि:- अथान्यद्वद महात्म्य क्षेमाणा हिमपर्वते. तस्मात् वामप्रदेशे हि गुहय परमगहवरा:. त्रिशघोजन विस्तिरना नानामुनिगणाविन्वता:. जाबा लीगलिवास्चेव मार्कण्डयो महामनाः. च्यवनशच महा भाग: भ्रगुपुत्रा अंगिरा मनु:. ऐते चान्योनयवहवो मुनय: तप्तुमन्विता श्री:... जावाली, गालव, मार्कण्डय, महामना च्यवन, तेजस्वी भ्रगु आदि महाऋषियों को तपसिद्धि का क्षेत्र यही केदारखंड, गढ़वाल हिमालय ही रहा है. इस प्रकार इस स्थान का कण-कण पवित्र एवं पुण्य है. स्कंध पुराण के अध्याय ५७ श्लोक १० के अनुसार- कण्वाश्रम समारभ्य यावनन्दगिरीभेवेत. तावत्क्षत्रं परं पुण्यं भुक्तिमुक्तिप्रदायकम. कण्वो नाम महातेजा महर्षिलोकविश्रुतः. तस्याश्रमपदे नत्वा भगवंत रमापरितम अर्थात कण्वाश्रम से लेकर नंदगिरी तक जितना क्षेत्र है वह परम पवित्र एवं भुक्ति मुक्तिदायक है.लोक में बिख्यात कण्व नामक महातेजस्वी महर्षि ने उस आश्रम में भगवान रमापति बिष्णु को नमस्कार करके इस क्षेत्र में निवास करने के लिए प्रार्थना की जो प्रार्थना स्वीकृत हुई. महर्षि कण्व का आश्रम मालनी नदी के तट पर कोटद्वार क्षेत्र तक फैला हुआ था. इस कोटद्वार कस्बे के समीप चारो तरफ से द्वारपाल की तरह घिरी पर्वत श्रेणियों में पवित्र धाम श्री सिद्धबली मंदिर स्थित है. जिसके चरणों में खोह नदी बहती है. कुछ बिद्वानो ने स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित अध्याय ११५ श्लोक २५ में वर्णित- गंगाद्वारोत्तरेभागे गंगाया: प्राग्वीभागके. नदी कोमुद्दुती सर्वदारिदनाशिनी. अर्थात गंगाद्वार हरिद्वार के उत्तरपूर्व यानि इशान कोण के कोमुद तीर्थ के किनारे कोमुदी नाम की प्रसिद्ध दरिद्रता हरने वाली नदी निकलती है. जिस प्रकार गंगाद्वार माया क्षेत्र व वर्तमान में हरिद्वार एवं कुब्जाम्र ऋषिकेश के नाम से प्रचलित हुए, उसी प्रकार कौमुदी वर्तनाम में खोह नदी नाम से जानी जाने लगी. जो कौमुदी का अपभ्रंश है. जो डाडामंडी क्षेत्र एवं हेमवंती हूयूल नदी के दक्षिण से निकली है इस पोराणिक नदी के तट पर श्री शिद्धबली धाम पोराणिक सिद्धपीठ के रूप में विराजमान है. इस पवित्र धाम में जो साक्षात शिव द्वारा धारण, जिस पर शिवजी ने स्वयं निवास किया है, अपने आप में पूजनिय है. श्री सिद्धबली नाम की महत्ता एवं पोराणिकता के बिषय में कई जनश्रुतियां एवं किवंदंतियाँ प्रचलित है. कहा जाता है. स्कन्द पुराण में वर्णित जो कौमुद तीर्थ है उसके स्पष्ट लक्षण एवं दिशाए इस स्थान को कौमुद तीर्थ होने का गौरव देते है. स्कन्द पुराण के अध्याय ११९ श्लोक ६ में कौमुद तीर्थ के चिहन के बारे में बताया गया है कि- तस्य चिहनं प्रवक्ष्यामि यथा तज्जायते परम. कुमुदस्य तथा गन्धो लक्ष्यते मध्यरात्रके. अर्थात महारात्रि में कुमुद यानि बबूल के पुष्प का गंध लक्षित होती है. प्रमाण के लिए आज भी इस स्थान के चारो और बबूल के बृक्ष विद्यमान है कुमुद तीर्थ के बिषय में कहा गया है कि पूर्वकाल में इस तीर्थ में कौमुद यानि कार्तिक की पूर्णिमा को चन्द्रमा ने भगवान शंकर को तपकर प्रसन्न किया था. इसलिए इस स्थान का नाम कौमुद पड़ा. शाएद कोटद्वार कस्बे को तीर्थ कौमुद द्वार होने के कारण ही कोटद्वार नाम पड़ा. क्योंकी प्रचलन के रूप में स्थानीय लोग इस कौमुद द्वार को कोद्वार कहने लगे, जिसे अंग्रजो के शासन काल में अंग्रजो के सही उच्चारण न कर पाने के कारण उनके द्वारा कोड्वार कहा जाने लगा. जिसे उन्होंने सरकारी अभिलेखों में कोद्वार ही दर्ज किया. और इस तरह इसका अपभ्रंश रूप कोटद्वार नाम प्रसिद्द हुआ. परन्तु वर्तमान में इस स्थान को सिद्धबाबा के नाम से ही पूजा जाता है. कहते है की सिद्धबाबा न इस स्थान पर कई वर्षो तक तप किया. श्री सिद्धबाबा को लोक मान्यता के अनुसार साक्षात गोरखनाथ माना जाता है जो की कलयुग में शिव के अवतार माने जाते है. गुरु गौरखनाथ भी बजरंगबली की तरह एक यति है. जो अजर और अमर है. इस स्थान को गुरु गोरखनाथ के सिद्धि प्राप्त स्थान होने के कारण सिद्ध स्थान माना गया है एवं गोरखनाथ जी को इसलिए सिद्धबाबा भी कहा गया है नाथ संप्रदाय एवं गोरख पुराण के अनुसार नाथ संप्रदाय के गुरु गोरखनाथ जी के गुरु मछेद्र नाथ जी पवन पुत्र बजरंगबली के आज्ञानुसार त्रियाराज्य (जिसे चीन के समीप माना जाता है) में जिसकी साशक रानी मेनाकनी थी के साथ गृहस्थ आश्रम का सुख भोग रहे थे. परन्तु उनके परम तेजस्वी शिस्य गोरखनाथ जी को जब यह ज्ञात होता है तो उन्हें बड़ा दुःख एवं क्षोभ हुआ तो वह प्रण करते है की उन्हें किसी भी प्रकार उस राज्य से मुक्त किया जाये जब वे अपने गुरु को मुक्त करने हेतु त्रियाराज्य की और प्रस्थान करते है तो पवनपुत्र बजरंगबली अपना रूप बदल कर इस स्थान पर उनका मार्ग रोकते है तब दोनों यतियों के मध्य भयंकर युद्ध होता है. पवनपुत्र को बड़ा आस्चर्य होता है कि वे एक साधारण साधू को परास्त नहीं कर पा रहे है. उन्हें पूर्ण विस्वास हो जाता है कि यह दिव्य पुरुष भी मेरी तरह ही कोई यति है तब हनुमान जी अपने वास्तविक रूप में आते है और गुरु गोरखनाथ जी से कहते है कि में तुम्हारे तप बल से अति प्रसन्न हूँ. इस हेतु तुम कोई भी वरदान मांग सकते हो, तब श्री गोरखनाथ जी कहते है कि तुम्हे मेरे इस स्थान में प्रहरी की तरह रहना होगा एवं मेरे भक्तो का कल्याण करना होगा. विस्वास है की आज ही यहाँ वचनवद्ध होकर बजरंगबली जी साक्षात उपस्थित रहते है. तब से ही इस स्थान पर बजरंगबली की पूजा की बिशेष महत्ता है और इन्ही दो यतियों (श्री बजरंगबली जी और गोरखनाथ जी) जो सिद्ध एवं बलि है, के कारण सिद्ध्बल्ली कहा गया है एवं श्री सिद्धबाबा को सभी सिद्धबली बाबा के नाम से पुकारते है. यहाँ पर श्री गोरखनाथ जी ने अपना स्थायी स्थान बनाकर अपने सिष्य पवन नाथ को नियुक्त किया. इस स्थान पर सिक्खों के गुरु संत गुरु नानक जी ने भी कुछ दिन विश्राम किया. ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान को सभी धर्मावलंबी समान रूप से पूजते एवं मानते है. इस स्थान को एवं अंग्रेज अधिकारी के सहयोग से हुआ. कहते है इस स्थान के समीप एक अंग्रेज अधिकारी (जो खाम सुपरिटेंडेंट हुआ करता था) ने एक बंगला बनवाया जो आज भी इस स्थान पर मोजूद है. जब घोड़े पर चडकर इस बंगले पर रहने के लिए आया तब घोडा आगे नहीं बड़ा तब उसने घोड़े पर चाबुक मारा तो घोड़े ने अधिकारी को जमीन पर पटक दिया तो वह बेहोश हो गया. उस अधिकारी को बेहोसी में सिद्धबाबा ने दर्शन देकर कहा की इस स्थान पर मेरे द्वारा पूजे जाने वाली पिंडियाँ जो खुले स्थान पर है उनके लिए स्थान बनाओ तभी तुम इस बंगले में रह सकते हो, तभी उस अधिकारी द्वारा जन सहयोग से इस स्थान का जीर्णोद्धार किया गया. जो आज धीरे-धीरे भक्तो एवं श्रद्धालुओं के सहयोग से भव्य रूप धारण कर चूका है

Hanuman Chalisa Doha Shri guru charan saraj raj, Nij manu mukur sudhare |
 Barnau raghubar bimal jasu, Jo dhayak phal chare ||
 Budhihien tanu jaanke, Sumerao pavan-kumar |
 Bal budhi vidhya dehu mohe, Harhu kales bikar ||
 Chopai Jai hanuman gyan gun sagar |
 Jai kapise tehu lok ujagar ||
 Ram dut atulit bal dhama |
 Anjani putra pavan sut nama ||
 Mahabir bikram bajragee |
 Kumati nivas sumati ke sangi ||
 Kanchan baran biraj subesa |
 Kann kundal kunchit kesa ||
 Haat vajar ao dheja biraje |
 Kandhe muj janeu sajee ||
 Sankar suvan kesrinandan |
 Tej pratap maha jag bandhan ||
 Vidhyavan gune aati chatur |
 Ram kaaj kaibe ko aatur ||
 Prabhu charit sunibe ko rasiya |
 Ram lakhan sita maan basiya ||
 Susham roop dhari siyahi dhikhava |
 Bikat roop dhari lank jarava ||
 Bhim roop dhari asur sahare |
 Ramchandra ke kaaj savare ||
 Laye sanjeevan lakhan jiyaye |
 Shriraghuvir harsha ure laye ||
 Raghupati kinhe bahut badai |
 Tum mam preye bharat sam bhai ||
 Sahart badan tumarhu jas gavey |
 Aas kahi shripati kant lagavey ||
 Sankadeek bhramadhi munisa |
 Narad sarad sahit ahisa ||
 Jam kuber digpal jaha thi |
 Kavi kovid kahi sake kaha thi ||
 Tum upkar sughuv kehina |
 Ram milaye raj pad denha ||
 Tumraho mantra vibhekshan mana |
 Lankeshvar bhaye sab jag jaan ||
 Jug sahes jojan per bhanu |
 Linyo tahi madhur phal janu ||
 Prabhu mudrika meli mukh mahi |
 Jaldhi ladhi gaye acraj nahi ||
 Durgam kaaj jagat ke jete |
 Sugam anugrah tumre tete ||
 Ram duaare tum rakhvare |
 Hoot na aagya binu pasare ||
 Sab sukh lahai tumhre sarna |
 Tum rchak kahu ko daarna ||
 Aapan tej samharo aape |
 Teno lok hakte kape ||
 Bhut pesach nikat nahi aaveh |
 Mahavir jab naam sunaveh ||
 Nase rog hare sab peera |
 Japat nirantar hanumat bal bira ||
 Sankat se hanuman chudave |
 Maan kam bachan dayan jo lavey ||
 Sab per ram tapasvi raja |
 Tin ke kaaj sakal tum saja ||
 Aur manorat jo kayi lave |
 Tasuye amit jeevan phal pavey ||
 Charo guj pratap tumarah |
 Hai prasidh jagat ujeyara ||
 Sadhu sant ke tum rakhvare |
 Asur nikandan ram dulare ||
 Ashat sidhi navnidhi ke data |
 As var deen jaanki mata ||
 Ram rasayan tumhre pasa |
 Sada raho raghupati ke dasa ||
 Tumreh bhajan ram ko bhavey |
 Janam janam ke dukh bisravey ||
 Ant kaal raghubar pur jaie |
 Jaha janam hari bhagat kahaei ||
 Aur devta chitna dhareyo |
 Hanumat seye sarav sukh karaei ||
 Sankat kate mite sab pera |
 Jo sumere hanumat balbira ||
 Jai jai jai hanuman gusai |
 Kripa karo guru dev ke naai ||
 Jo sat bar pat kar koi |
 Chutehi bandhi maha sukh hoai ||
 Jo yahe pade hanuman chalisa |
 Hoye sidhi sa ke goresa ||
 Tulsidas sada hari chera |
 Kijeye nath hridaye maha dera ||
 
(Source http://www.sidhbalidham.org/hn/sidhbali_dham_mahima.aspx)
       

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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तस्य चिंह प्रवक्ष्यामि यथा तज्जायते परम!
 कुमुदस्य तथा गन्धो लक्ष्यते मध्यरात्रके!

अर्थात स्कन्द कहते है, उसके चिह्न में बताऊंगा, जिससे उसकी (स्थान) श्रेष्ठता जानी जाती है ! वहां मध्य रात्री में कुमुद (बबूल) पुष्प की गंध लक्षित होती है! प्रमाणस्वरूप आज भी इस स्थल पर चारो और बबूल के वृक्ष विद्यमान है ! यह स्थान प्राचीन काल से सिद्धस्थल रहा है !

हनुमान जी की आरती |

 
श्री हनुमान जी की आरती |

 आरती कीजै हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ||
 जाके बल से गिरिवर काँपे | रोग दोष जाके निकट न झांके ||
 अनजानी पुत्र महाबलदायी | संतान के प्रभु सदा सहाई |
 दे बीरा रघुनाथ पठाये | लंका जारी सिया सुध लाये ||
 लंका सो कोट समुद्र सी खाई | जात पवनसुत बार न लाई ||
 लंका जारी असुर संहारे | सियारामजी के काज सँवारे ||
 लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे | आणि संजीवन प्राण उबारे ||
 पैठी पताल तोरि जम कारे | अहिरावण की भुजा उखाड़े ||
 बाएं भुजा असुरदल मारे | दाहिने भुजा संतजन तारे ||
 सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे | जै जै जै हनुमान उचारे ||
 कंचन थार कपूर लौ छाई | आरती करत अंजना माई ||
 लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई | तुलसीदास प्रभु कीरति गाई ||
 जो हनुमान जी की आरती गावै | बसी बैकुंठ परमपद पावै ||
 आरती कीजै हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ||
 श्री हनुमते नम: आरार्तिकं समर्पयामि | हनुमान जी को कपूर, केशर, ५ लौंग की आरती दिखाएँ|

 नमस्कार - श्री हनुमान जी को नमस्कार करें -

 ॐ मनोजवं मारुततुल्यवेगम, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं |
 वातात्मजं वानार्यूथ्मुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपघे ||

 श्री हनुमते नम: त्वां नमस्करोमि | श्री हनुमान जी को नमस्कार करें |
 प्रदिक्षना - श्री हनुमान जी की परिक्रमा ग्यारह बार होती है |

 ॐ यानी कानी च पापानि जन्मान्तरकृतानि च|
 तानी सर्वानी नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे पदे ||

 श्री हनुमते नम: प्रदक्षिणा समर्पयामि | श्री हनुमान जी को प्रदक्षिण करें |

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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श्री सिद्धबली जी की आरती |

 श्री सिद्धबली जी की आरती गायें, ऋषि मुनि और साधुजन |
 जलत, अगर, कपूर, बाटी, ध्यान करते भक्त जन ||
 श्री सिद्धबली जी .............................
 पल्लवित पुष्पित है आँगन, मंद-मंद शीतल पवन |
 खोह वापल चरणों में बहती, द्वारपाल है गिरिवन ||
 श्री सिद्धबली जी .............................
 देत दीन दुखी को सुख, अरु देत निर्धन को धन |
 हम पर भी धरो बाबा, अपनी करुना के नयन ||
 श्री सिद्धबली जी .............................
 किया पर्वतों पर जप तप, हुई तपस्या तब अखंड |
 भये प्रकट बजरंग बली जी, बाबा जी पर अति प्रस्सन ||
 श्री सिद्धबली जी .............................
 तुमको शोभित त्रिशूल संगल, गूंजत शंखों से गगन |
 आठों पहर प्रचंड बाबा, तेरी धूनी सदा अखंड ||
 श्री सिद्धबली जी .............................
 शक्तिदाता हो तुम बाबा, तेज आपका अति प्रचंड |
 डाकिनी-शाकिनी पिशाच को, देते बाबा तुम्ही दंड ||
 श्री सिद्धबली जी .............................
 नित्य धावे आरती गावें, सेवक आपका खल "महंत" |
 भेली गुड का करे जो अर्पण, देते बाबा उनको धन ||
 श्री सिद्धबली जी



(source-http://www.sidhbalidham.org)
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यहाँ पर भक्तो द्वारा विश्वाश किया जाता है कि जो भी पवित्र भावना से कोई मनौती श्री सिधिबली बाबा से मांगता है वह अवश्य पूर्ण होती है !

यहाँ पर रविवार, मंगलवार एव शनिवार को भंडारा करने की परम्परा है ! रविवार के भंडारे का विशेष महत्व है जो सिद्ध बाबा के लिए होता है! इसमें मुख्य रूप से गुड भेली का प्रसाद, आटा, घी व् गुड से निर्मित रोत एवंम नारियल का प्रसाद चडाता है

मंगल व् शनि वार भंडारा हनुमान जी के लिए दिया जाता है ! 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पूजा पद्धति

प्रातःकाल ब्रह्ममहूर्त में पुजारियों द्वारा (जिनकी पूजा स्वयं सिद्ध बाबा) जी ने स्वयं आराध्य के रूप में की थी) की अभिषेक करते है ! तत्पश्चात सर्वप्रथम साधुओ द्वारा बनाये गए रोट (गुड, घी, आटा से निर्मित शुद्ध रोटी) का भोग चड़ता है!  इसके उपरांत अन्य भोग चड़ते है !  गर्भ गृह में प्रतिष्ठित हनुमान जी की भव्य मूर्ती समस्त आभूषणो सहित सुसज्जित है! पुजारी गण गदा से दर्शनार्थियों की पीठ पर हल्का सा प्रहार कर दुःख, कष्ट निवारण व् सुख समृधि का आशीर्वाद दते है !

Anil Arya / अनिल आर्य

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This is very famous temple in Kotdwar. I was not aware that this topic is not yet in forum . Thanks for starting this topic.  Great Job ..

Devbhoomi,Uttarakhand

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लेंस डाउन से 38 किलोमीटर की दूरी पर हनुमान जी का सिद्ध बली मंदिर है। मंदिर के पास ही एक बहुत बड़ा पार्क है , जहां आप भगवान की भक्ति में लीन होने के अलावा कुदरत का खूबसूरत साथ भी पा सकते हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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सिधिबली मेला

 दिसम्बर माह के पौष संक्रांति को श्री सिधि बाबा तीन दिवसीय विशाल मेला लगता है जिसमे तीन दिन तक लगातार बड़े भंडारे आयोजित होते है! मेले अंतिम दिन सवा मन का रोट प्रसाद स्वरुप बनाया जाता है और सिधि बाबा के जागर होता है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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