उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों मैं जंगली जानवरों का ख़तरा काफी समय से बना हुवा है और ये कोई नहीं बात नहीं है, जंगलात वाले तो क्या कहें, वो तो बस शाम होते ही दारु ठेक मैं नगर आएंगे या कहीं किसी ब्यौड़े के साथ घुमते नगर आयेंगें ये हैं हमारे फोरेस्टर और पतरौल जी , उत्तराखंड के पहड़ी इलाकों मैं जितने भी फोरेस्टर और पतरौल हैं उनको ये भी पता नहीं होता है की उनकी ड्यूटी जंगल के किस हिस्से मैं हैंऔर कब से कबा तक है और क्या उनकी ड्यूटी है, हाँ इतना जरूर हैं की उनको सिर्फ पता होता है
की जंगल के पास का गान मैं किसके घर में य दूकान मैं दारु मिलती है, सबसे पहले ये लोग ये पता लगते है , उसके बाद अपनी चौकी के बारे मैं पता लगाते हैं की फोरेस्टर और पतरौल की चौकी कहाँ है बस इतना ही काम हैं इनका शाम होते ये दारु पीकर कहीं किसी के साथ घुमते होते हैं
या तो कहीं किसी रास्ते के किनारे पड़े होते हैं इनको जंगल के बारे मैं कुछ्ह भी मालुम नहीं होता है, की जगल मैं कोई जानवर है या नहीं , जगंली जानवरों को पहले इन जन्ग्लातियों खाना चाहिए, इन हराम हदों को क्या मालुम की गानों मैं लोग जंगली जानवरों के डर से कैसे अपना जीवन ब्यतीत कर रहे हैं !
हाँ ये जरूर हैं की कभी इन्हें कोई जंगल मैं कोई गरीब पेड काटते हुए पकड़ लिया तो बस हो गयीं इनकी कमाई वेचारे गरीब को तो कहीं का नहीं छोड़ते हैं ये जंगली फोरेस्टर और पतरौल,कास जंगली जानवर इनको खा जाय तो फिर पता चलेगा इनको गाँव वालो का दर्द कैसे रहते हैं ये लीग इन जंगली जानवरों के डर से इन पहाड़ों मैं !